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टैरिफ टेंशन में भारत-अमेरिका डिप्लोमेसी: जयशंकर-रूबियो मीटिंग से क्या बदलेगा सीन?

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विश्व राजनीति में जब भी अमेरिका कोई आर्थिक कदम उठाता है, उसका असर वैश्विक बाजार पर सीधा दिखाई देता है। हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नए टैरिफ नीति ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है। इस बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अमेरिका के प्रभावशाली सीनेटर और ट्रंप के करीबी माने जाने वाले मार्को रूबियो से बातचीत ने नए कूटनीतिक संकेत दिए हैं।

अब सवाल ये है—क्या यह बातचीत भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में नई दिशा देगी? क्या भारत को ट्रंप की संभावित टैरिफ नीतियों से राहत मिलेगी?

टैरिफ पॉलिटिक्स: ट्रंप की नीति क्या कहती है?

डोनाल्ड ट्रंप हमेशा से 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत काम करते आए हैं। उनके कार्यकाल में चीन, भारत और यूरोप जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाए गए थे, ताकि अमेरिकी कंपनियों को बढ़ावा मिल सके। अब जब ट्रंप 2024 के चुनावों में दोबारा सक्रिय हो चुके हैं, तो उन्होंने संकेत दिए हैं कि वे 30% तक टैरिफ फिर से लागू कर सकते हैं।

इस नीति का सीधा असर भारत जैसे उभरते हुए बाजारों पर होगा, खासकर टेक्सटाइल, आईटी और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में।

जयशंकर-रूबियो बातचीत: कौन-कौन से मुद्दे रहे चर्चा में?

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, एस. जयशंकर और मार्को रूबियो के बीच हुई बातचीत में टैरिफ, इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी, और सप्लाई चेन सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत एक भरोसेमंद व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों को मिलकर ऐसी रणनीति बनानी चाहिए, जिससे व्यापार बाधित न हो।

रूबियो, जो रिपब्लिकन पार्टी में एक मजबूत आवाज माने जाते हैं, ने भारत की चिंताओं को 'वाजिब' बताया और भरोसा दिलाया कि भारत के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

क्यों महत्वपूर्ण है ये बातचीत?

  1. चुनावी माहौल में संवाद: ट्रंप और उनके सहयोगियों के साथ संवाद ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका में चुनावी अभियान चरम पर है। इस समय की गई कूटनीतिक पहल भविष्य के लिए बुनियाद रख सकती है।

  2. टैरिफ से सुरक्षा की उम्मीद: यदि जयशंकर की बातचीत के बाद कोई 'फेवरिट नेशन' या 'टैरिफ छूट' जैसी नीति बनती है, तो यह भारत के लिए बड़ी राहत हो सकती है।

  3. सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन: चीन पर निर्भरता कम करने की अमेरिकी नीति में भारत की भागीदारी बढ़ सकती है। इससे दोनों देशों को लाभ होगा।

भारत के लिए संभावित चुनौतियां

  • अमेरिकी घरेलू दबाव: ट्रंप अपने वोटबैंक को खुश रखने के लिए टैरिफ को राजनीतिक मुद्दा बना सकते हैं, जिससे भारत को नुकसान हो सकता है।

  • प्रतिस्पर्धा से मुकाबला: वियतनाम, मेक्सिको जैसे देश भी अमेरिका के साथ ट्रेड एग्रीमेंट की होड़ में हैं। भारत को इनसे मुकाबला करना होगा।

  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में बाधा: टैरिफ के साथ-साथ टेक एक्सपोर्ट पर भी निगरानी कड़ी हो सकती है, जो भारत के आईटी सेक्टर को प्रभावित करेगा।

अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: चीन और यूरोप की प्रतिक्रिया

ट्रंप की टैरिफ नीति सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि चीन और यूरोप के लिए भी चिंता का विषय बन चुकी है। चीन पहले ही जवाबी टैरिफ की धमकी दे चुका है, जबकि यूरोपीय यूनियन अमेरिका के साथ ट्रेड वार टालने के लिए राजनयिक स्तर पर सक्रिय हो गया है।

ऐसे में भारत का यह संतुलित रुख—जहां वह अमेरिका के साथ व्यापार को भी महत्व दे और अपनी स्वायत्तता को भी बनाए रखे—एक चतुर रणनीति साबित हो सकता है।

क्या बदलेगा सीन?

जयशंकर और रूबियो की बातचीत के बाद उम्मीद की जा रही है कि आने वाले हफ्तों में अमेरिका की ओर से भारत को लेकर क्लैरिटी आएगी। यदि ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनते हैं, तो यह बातचीत एक नींव की तरह काम करेगी।

भारत को चाहिए कि वह:

  • अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों के साथ संवाद बनाए रखे,

  • टैरिफ से बचाव के लिए द्विपक्षीय समझौते तैयार रखे,

  • और अपने घरेलू उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करे।

निष्कर्ष:

जयशंकर और रूबियो के बीच हुई बातचीत निश्चित रूप से एक डिप्लोमैटिक विंडो खोलती है। हालांकि ट्रंप की टैरिफ नीति अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है, लेकिन भारत को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या यह बातचीत केवल औपचारिक थी या वाकई कोई बड़ा बदलाव आने वाला है।

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